ये हैं श्री कृष्ण जी की 16 कलाएं जिनके बारे में जानकर आप चौंक जाओगे और उनकी कलाओं का सम्पूर्ण वर्णन। Shri krishn ji ki sampurna 16 kalayein.
श्री कृष्ण जी की 16 कलाएं (Shri Krishn Ji ki 16 kalayein)
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श्री कृष्ण जी की 16 कलाएं (Shri Krishn Ji ki 16 kalayein)
वैसे तो भगवान श्री हरि विष्णु जी के सभी अवतार अपने आप में विशेष महत्व रखते हैं और सभी अवतार अपने आप में महान भी है। परंतु फिर भी भगवान विष्णु जी के सबसे लोकप्रिय अवतारों में भगवान श्री राम जी और श्री कृष्ण जी का नाम आता है। जिनमें से श्री राम जी 12 कलाओं से युक्त है वहीं श्री कृष्ण जी 16 कलाओं से युक्त बताये जाते हैं।
पुराणों से ज्ञात जानकारी के अनुसार श्री राम जी सूर्यवंशी हैं और सूर्य की 12 कलाएँ होती हैं इसीलिए श्री राम जी 12 कलाओं से युक्त हैं वहीं श्री कृष्ण जी की बात करें तो वे चन्द्र वंशी हैं और चंद्रमा की 16 कलाएँ होने की वजह से वे 16 कलाओं से युक्त बताये जाते हैं। इसीलिए श्री कृष्ण जी को भगवान विष्णु जी का पूर्णावतार बताया जाता है।
धर्म शास्त्रों के अनुसार 16 कलाओं से युक्त मनुष्य ईश्वरतुल्य होता है। लेकिन मनुष्य मे ऐसा अधिकतर सम्भव नहीं होता क्यूंकि मनुष्य की कोई भी कला स्थायी नहीं है जो समय में बदलाव होने पर परिवर्तित हो जाती है।
यहां 16 कलाओं से आशय श्री कृष्ण जी के गुणों या विशेषताओं से हैं जो श्री कृष्ण जी के अंदर विद्यमान हैं। इन कलाओं को अलग अलग धर्मग्रंथ में अलग अलग बताया गया है परंतु इनका तात्पर्य एक ही है। आइए आज हम इन्हीं कलाओं के बारे में आपको बताते हैं।
श्री धन संपदा - इस कला से युक्त व्यक्ति धन से, मन से, वचन आदि से धनी होता है। और आप सब ये तो जानते ही हैं कि श्री कृष्ण जी सभी प्रकार से धनी हैं और सभी प्रकार की धन संपदा के स्वामी भी हैं। उनके पास जो भी आस लेकर जाता है वो कभी खाली हाथ नहीं लौटता। वो धनवान होने के साथ साथ दयालु भी है। इसीलिए जब उनकी भेंट उनके मित्र सुदामा से हुयी तो उन्होंने उनको दो लोक सौंप दिए थे।
भू संपदा - इस कला से युक्त व्यक्ति असीमित भूमि का स्वामी होता है अर्थात दूसरे शब्दों में कहें तो व्यक्ति का बड़े भू भाग पर आधिपत्य होता है। ऐसा व्यक्ति पृथ्वी पर राज्य करने की क्ष्मता रखता है ऐसे व्यक्ती को भू संपदा कला से युक्त माना जाता है।
कीर्ति सम्पदा- कीर्ति संपदा से युक्त व्यक्ति लोगों के बीच काफी लोकप्रिय होता है और समाज में उनको ख्याति भी प्राप्त होती है । ऐसे व्यक्ति से सभी लोग प्रेम करते है और उन पर विश्वास भी करते हैं। इनके मान सम्मान और यश का चारों दिशाओं में बोलबाला होता है।
इला - इला का अर्थ होता है सम्मोहक वाणी। जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है कि ऐसे व्यक्ति अपनी वाणी से लोगों को सम्मोहित कर लेते हैं और वे अपनी वाणी से किसी को भी अपना बना लेते है यहाँ तक कि क्रोधित व्यक्ति भी उनकी आवाज सुनकर शांत हों जाता है। भगवान श्री कृष्ण जी अपनी इसी कला से सबका मन मोह लेते थे इसीलिए उन्हें मोहन भी कहा जाता था।
लीला - भगवान श्री कृष्ण जी का एक नाम लीलाधर भी है । प्रभु द्वारा रहस्यमयी तरीके से रचा गया ऐसा स्वांग या नाटक जिस से लोग अचंभित हो उठते हैं, जिसके बारे में प्रभु को पहले से पता होता है परंतु अपने भक्तों और जनमानस के कल्याण के लिए वे उसे इस प्रकार से रचते हैं कि वह लोगों को वास्तविक प्रतीत हो, लीला कहलाती है। कृष्ण जी ने भगवान होते हुए भी जन्म से ही मनुष्य रूपी जीवन में कई सारी लीलाएं की।
कांति, सौंदर्य - जिसके सरूप को देखकर आपका मन अपने आप उसकी तरफ आकर्षित होने लगे और जिनको बार बार देखने का दिल करे ऐसे व्यक्ति कांति कला से युक्त होते हैं। ये अत्याधिक सुन्दर और मोहक छवि वाले होते हैं इनकी इस मोहक छवि को देखकर मन स्वतः ही प्रसन्न होने लगता है।
विद्या - यहां विद्या से तात्पर्य केवल गुरुकुली शिक्षा या विद्यालयी शिक्षा से नहीं है बल्कि विद्या से तात्पर्य है कि सभी धर्म ग्रंथों, वेदों, पुराणों, शास्त्रों, संगीत, युद्ध आदि का सम्पूर्ण ज्ञान होना और श्री कृष्ण जी को सभी प्रकार की विद्याओं का सम्पूर्ण ज्ञान है।
विमला - जिसके मन में किसी प्रकार का छल-कपट ना हो उसे इस कला से युक्त माना जाता है। भगवान श्री कृष्ण सभी के प्रति समान व्यवहार रखते थे, उनके लिए न कोई छोटा था और न कोई बड़ा । उनके लिए सभी एक समान थे। उनके मन में किसी के लिए कोई पक्षपात नहीं था।
उत्कर्षिणी शक्ति - उत्कर्षिणी शक्ति से तात्पर्य है लोगों को प्रेरित करने की क्षमता। जो लोगों को उनका लक्ष्य पाने के लिए प्रेरित कर सके। महाभारत के युद्ध के समय श्री कृष्ण ने इसी कला का परिचय देते हुए अपने परिवार के लोगों को अपने विरुद्ध देखकर युद्ध से विमुख हुए अर्जुन को युद्ध करने के लिए प्रेरित किया और अधर्म पर धर्म की विजय पताका लहराई।
विवेक अर्थात् ज्ञान - ऐसा व्यक्ति जो अपने विवेक का प्रयोग करके सही और न्यायोचित निर्णय लेता है, विवेकशील कहलाता है। श्री कृष्ण जी इस कला से परिपूर्ण है।वह अपने विवेक से लोगों को सही मार्ग समझाने में सक्षम हैं। उन्होंने महाभारत का युद्घ होने से पहले दुर्योधन से पांडवों को 5 गाँव देने की बात कही थी पर दुर्योधन नहीं माना तब श्री कृष्ण जी ने युद्ध करने की घोषणा की।
कर्मण्यता - भगवान श्री कृष्ण इस कला से संपन्न थे।श्री कृष्ण जी अर्जुन को केवल उपदेश ही नहीं दे रहे थे बल्कि कर्म भी कर रहे थे। उनकी इच्छा मात्र से दुनिया का हर काम हो सकता था परंतु फिर भी महाभारत युद्ध के दौरान वह समान्य मनुष्य की तरह कर्म कर रहे थे और युद्ध में भाग ना लेते हुए भी अर्जुन के सारथी बनकर उनका रथ चला रहे थे और कर्म कर रहे थे ।
योग - योग को भी कला के रूप में जाना जाता है। साधारण शब्दों मे योग का अर्थ होता है जोड़ना। यहां पर योग से तात्पर्य आध्यात्मिक जोड़ से हैं अर्थात् मनुष्य की आत्मा का परमात्मा से जुड़ना योग कहलाता है। इस कला से युक्त मनुष्य जीवन की सभी परिस्थितियों में अपने आप को स्थिर रख पाता है।
भगवान श्री कृष्ण को योगेश्वर कहा गया है वह उच्च कोटि के योगी थे। अपने योग बल से श्री कृष्ण ने माता के गर्भ में पल रहे परीक्षित की ब्रह्मास्त्र से रक्षा की थी ।
प्रहवि अर्थात् विनय - यह कला उन व्यक्तियों में पाई जाती है जो अहंकार से रहित होते है। प्रभु श्री कृष्ण जी सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी हैं। वो पल भर में कुछ भी करने का सामर्थ्य रखते हैं पर फिर भी वो अहंकार से रहित होकर विनय का भाव प्रदर्शित करते हैं। भरी सभा में वे अहंकार से रहित होकर अपने मित्र सुदामा के चरण धोते हैं और उनको गले से भी लगा लेते हैं।
सत्य धारणा - इस कला का स्वामित्व उन व्यक्तियों के पास होता है जो कठिन समय में भी सत्य का साथ नहीं छोड़ते। श्री कृष्ण जी भी इस कला के स्वामी हैं। उन्होंने धर्म के पथ पर चलते हुए हमेशा सत्य बोला।
आधिपत्य - प्रायः आधिपत्य से तात्पर्य लगाया जाता है कि जबरदस्ती से किसी पर अधिकार बनाना परंतु यहां आधिपत्य का तात्पर्य ऐसे गुण से है जिससे व्यक्ति स्वयं इतना प्रभावशाली हो जाता है कि अन्य मनुष्य स्वयं उसके अधीन रहना पसंद करते हैं और उसके संरक्षण में सुरक्षित और खुशहाल महसूस करते हैं और विश्वास भी करते हैं। श्री कृष्ण जी भी इस कला से संपन्न थे ।इसीलिए पाण्डव भी श्री कृष्ण जी से प्रभावित रहते थे और उनके संरक्षण में सुरक्षित महसूस करते थे।
अनुग्रह - जिस व्यक्ति में अनुग्रह की क्षमता होती है वो हमेशा दूसरे के कल्याण में लगा रहता है। उनके पास जो भी सहायता के लिए पहुंचता है वो उनकी अपनी सामर्थ्य के अनुसार सहायता अवश्य करते हैं। जब श्री कृष्ण जी के पास दुर्योधन और अर्जुन पहुंचे तो उन्होंने दोनों की ही सहायता की। उनके पास जो भी सहायता के लिए पहुंचता था वो उसकी सहायता अवश्य करते थे।
तो ये थी प्रभु श्री कृष्ण जी की 16 अद्भुत कलाएँ जिनके बारे में आपको बता दिया गया है।
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