भगवान विष्णु जी के शक्तिशाली वाहन पक्षीराज गरुड़ कौन थे और कितने शक्तिशाली थे। bhagwan Vishnu ji ke shaktishali vahan Garudraj ki sampurna katha. powerful Garuda
भगवान विष्णु जी के शक्तिशाली वाहन पक्षीराज गरुड़ (Garud Puran ke Garud ki sampurna katha)
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Vishnu ji ke vahan shaktishali Pakshiraj Garuda (Powerful Garud) |
नमस्कार मित्रों जैसा कि हम सभी जानते है कि प्रभु श्री विष्णु जी शैय्या रूपी शेषनाग पर विश्राम करते हैं वहीं उनके वाहन के रूप में हम शक्तिशाली गरुड़ को देखते हैं। ये वहीं गरुड़ हैं जो पक्षियों के राजा हैं और अत्यंत शक्तिशाली हैं।
आज हम इस पोस्ट में गरुड़ जी के जन्म के बारे में और उनकी शक्तियों के बारे में जानेंगे।
गरुड का जन्म (Garud ka Janam)
शक्तिशाली गरुड़ माता विनता और पिता महर्षि कश्यप की सन्तान थे। महर्षि कश्यप की कद्रू और विनता नाम की दो पत्नियाँ थी। उनमें से कद्रू के गर्भ से एक समान तेजस्वी एक हजार नाग उत्पन्न हुए जिनमें शेषनाग और वासुकि आदि प्रमुख थे वहीं विनता के गर्भ से अरुण और गरुड़ नाम के पुत्र उत्पन्न हुए। शक्तिशाली गरुड़ का जन्म पक्षी के रूप में हुआ था।
गरुड की शक्तियाँ (Garud ki shaktiyan)
पक्षी राज गरुड़ जन्म लेते ही भूख से व्याकुल होने के कारण भोज्य पदार्थ प्राप्त करने के लिए माता विनता को छोड़कर आकाश में उड़ गए।
वे महान साहस और पराक्रम से संपन्न थे। उनमें ईच्छा अनुसार रूप धारण करने की शक्ति थी। वे अग्नि के समान उद्भासित होकर अत्यंत भयंकर जान पड़ते थे। उनका शरीर थोड़ी ही देर में बढ़कर विशाल हो गया। वे तो भयंकर थे ही उनकी आवाज भी भयंकर थी। और उनके उड़ने की गति अत्याधिक तेज थी।
उनको देखकर सभी देवता भयभीत होकर अग्नि देव की शरण में जाते है तब अग्नि देव गरुड़ के पराक्रम और शक्ति का व्याख्यान करते हुए उन्हें समझाते है कि ये कश्यप नंदन महाबली गरुड़ हैं जो तेज में मेरे ही तुल्य है ये नागों के विनाशक, देवताओं के हितेषी और दैत्यों तथा राक्षसों के शत्रु हैं। ये अपने शरीर का आकार अपनी इच्छा अनुसार बदल सकते हैं।
गरुड ने अपनी माँ को सर्पों से बचाया (Garud ne apni maa ko sarpo se Bachaya)

kadru aur uske naag pputron ka vinta ko bandi banana

जब विनता पुत्र गरुड़ को पता चला कि उनकी माँ विनता को सर्पों की माँ कद्रू ने और उसके सर्प पुत्रों ने छल से हराकर अपनी दासी बनाया है तो इस बात से गरुड़ को बहुत दुख हुआ। तब अपनी माँ के दुखों को दूर करने के लिए गरुड़ सर्पों के पास गए और बोले -हे जीभ लपलपाने वाले सर्पों तुम ये बताओ कि मैं तुम्हारे लिए क्या लाकर दूँ, किस विद्या का लाभ करा दूँ अथवा कौन सा पुरुषार्थ करके दिखा दूँ, जिससे मुझे तथा मेरी माँ को तुम्हारी दासता से छुटकारा मिल जाए।
तब सर्पों ने कहा - गरुड़ तुम पराक्रम करके हमारे लिए अमृत ला दो तो तुम्हें और तुम्हारी माँ को दास्य भाव से छुटकारा मिल जाएगा।
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Garud aur Sarpon ki Varta |
गरुड चले अमृत लेने (Garud Chale Amrit lene)
उनकी ये बात सुनकर पक्षीराज गरुड़ अमृत लेने के लिए निकल गए। उन्होंने रास्ते में पेड़ की काफी मोटी शाखा को मुँह में दबाकर रखा और 1 लाख योजन तक उड़ते रहे। उस समय पक्षीराज गरुड़ जी का स्वरूप दिव्य था। वे तेज, पराक्रम और बल से संपन्न तथा मन और वायु के समान वेग शाली थे।
गरुड़ के द्वारा अमृत लेने आने की बात को सुनकर इंद्र ने अमृत की रक्षा करने वाले देवताओं से कहा - रक्षकों! महान पराक्रमी और बलवान पक्षी गरुड़ अमृत लेने आ रहे हैं, उनके बल की कहीं तुलना नहीं है इसलिए आप सभी सचेत रहकर यहां अमृत की रक्षा कीजिए।
तब इंद्र की बात सुनकर देवताओं ने कवच पहना और नाना प्रकार के शक्तिशाली और अद्भुत अस्त्र - शस्त्र लेकर तैयार हो गए। परंतु जब पक्षी राज गरुड़ देवताओं के पास पहुंचे तो उनके बल को देखकर सभी देवता काँप उठे और उनके सभी आयुध आपस में टकराने लगे। तब गरुड़ ने समय व्यर्थ ना करते हुए पंखों से उत्पन्न प्रचंड वायु की सहायता से धूल उड़ाकर समस्त लोकों में अंधकार फैला दिया। जिससे अमृत की रक्षा करने वाले देवता कुछ भी नहीं देख पा रहे थे तब गरुड़ ने अपनी चोंच के प्रभाव से देवताओं का अंग अंग विदीर्ण कर डाला। तब इंद्र के कहने पर वायु देव ने अपने वेग से धूल को हटाया इससे वहाँ फैला अंधकार दूर हो गया। फिर सभी देवताओं ने गरुड़ पर परिघ, शूल, गदा, सूर्य के समान उद्भासित होने वाले चक्र तथा नाना प्रकार के अस्त्रों - शस्त्रों से प्रहार करना प्रारंभ कर दिया लेकिन पक्षीराज इससे बिल्कुल भी विचलित नहीं हुए और उन्होंने उन सभी देवताओं को नाखूनों से, चोंच से, पंखों से घायल कर दिया। तब गरुड़ से भयभीत होकर देवता, गंधर्व, वसु, रुद्र और यक्ष आदि भयभीत होकर विभिन्न दिशाओं में भागने लगे।
इसके बाद गरुड़ अमृत पाने की लालसा से आगे बढ़े वहाँ उन्होने वहाँ एक विशाल लोहे का चक्र जिसके चारों ओर सूर्य के समान अग्नि प्रज्वलित हो रही थी और बहुत तेज गति के साथ घूम रहा था उसे भी बड़ी आसानी से फोड़ दिया । इसके बाद अमृत की रक्षा करने वाले 2 विशाल सर्पों को भी मार दिया और अमृत का पात्र उठाकर चल दिये।
गरुड बने विष्णु जी के वाहन (Garud Bane Vishnu ji ke vaahan)
वहाँ से लौटते समय गरुड़ की भगवान विष्णु जी से भेंट हुयी तब विष्णु जी ने उनके पराक्रम से प्रसन्न होकर उन्हें सदैव अजर अमर रहने का और विष्णु जी के ऊपर ध्वजा में स्थित होने का वरदान दिया। इसके साथ साथ गरुड़ ने भी भगवान श्री हरि विष्णु जी के वाहन बनने के प्रस्ताव को भी स्वीकार किया।
गरुड का इंद्रदेव से सामना (Garud dev ka indra se yuddh)
जब गरुड़ का सामना इंद्र से हुआ तब इंद्र ने क्रोध में आकर उन पर अपने वज्र से प्रहर किया। लेकिन गरुड़ वज्र से आहत होने के बाद भी हँसते हुए मधुर वाणी में इंद्र से बोले - देवराज इंद्र तुम्हारे वज्र के प्रहार से मुझे तनिक भी पीड़ा नहीं हुयी है पर फिर भी जिनकी हड्डियों से ये वज्र बना है मैं उनका सम्मान अवश्य करूंगा और उनके साथ मैं तुम्हारा और तुम्हारे वज्र का आदर भी करूंगा इसलिए मैं अपना एक पंख जिसका तुम कहीं अंत नहीं पा सकोगे उसका त्याग करता हूं।
इसके बाद गरुड़ ने इंद्र से कहा कि मैं पर्वत, वन और समुद्री जल सहित पृथ्वी को तथा उसके ऊपर रहने वाले आपको तथा संपूर्ण चराचर लोकों को बिना परिश्रम के ढ़ो सकता हूं।
इन सब घटनाओं से पता चलता है कि शक्तिशाली गरुड़ के बल और पराक्रम का कोई तोड़ नहीं था था।
आशा है कि अब आप पक्षीराज गरुड़ के बल से और उनकी शक्तियों से भली-भाँति परिचित हो गए होंगे।ऐसी और अधिक रोचक जानकारी पाने के लिए हमारे सनातनी जानकारी (Sanatani Jankari) ब्लॉग से जुड़े रहिए। इसकी विडियो देखने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।
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