दुनिया के लिए अभिशाप बने सबसे शक्तिशाली असुर| pauranik kathaon ke anusar Sabse shaktishali Asur, Daitya, Rakshas. powerful demon of all time
सनातन धर्म के इतिहास के सबसे शक्तिशाली असुर ( pauranik kathaon ke anusar Sabse shaktishali Asur, Daitya, Rakshas)-
नमस्कार मेरे प्रिय साथियों, हमारे सनातन धर्म के इतिहास में पौराणिक ग्रंथों में कई सारे ऐसे शक्तिशाली असुरों का वर्णन मिलता है जिन्होंने अपनी शक्तियों से ना केवल पृथ्वी पर बल्कि सम्पूर्ण लोकों पर विजय प्राप्त की। इन शक्तिशाली असुरों ने अपनी ईच्छा शक्ति के प्रयोग से कठोर तपस्या कर देवी देवताओं को प्रसन्न किया और उनसे कई सारे शक्तिशाली वरदान प्राप्त किए। इन शक्तिशाली वरदानों को प्राप्त कर ये असुर और भी अधिक शक्तिशाली बन गए और इन्होंने अपनी शक्तियों का प्रयोग गलत कार्यो में करते हुए निर्दोषों पर, ऋषि-मुनियों पर यहाँ तक कि देवताओं पर अत्याचार करना प्रारंभ कर दिया। ये असुर इतने शक्तिशाली थे कि इन शक्तिशाली असुरों के संहार के लिए स्वयं प्रभु विष्णु जी, शिव जी एवं माता रानी ने कई अवतार लिए और उन असुरों का संहार किया
![]() | |
most powerful asura |
आज हम ऐसे ही शक्तिशाली असुरों के बारे में बात करने वाले हैं। इन शक्तिशाली असुरों के बारे में जानने केलिए आप हमारे ब्लोगपोस्ट सनातनी जानकारी से जुड़े रहिए और पोस्ट को अंत तक अवश्य पढ़िये।
सबसे शक्तिशाली असुर (MOst powerful asura s of indian history)-
हिरण्यकश्यप (Hiranyakshyap)-
असुर राज हिरण्यकश्यप अत्याधिक शक्तिशाली असुर था। जिसका भय समस्त लोकों में व्याप्त था। उसने ब्रह्मा जी की भयंकर तपस्या कर उनसे अमर होने का वरदान माँगा परन्तु ब्रह्मा जी ने इसे नियति के विरुद्ध बोलकर अमरता के अलावा कुछ और वर माँगने को कहा तब उनकी ये बात सुनकर हिरण्यकश्यप ने उनसे एक विचित्र वरदान माँगा जिसमें उसने कहा कि कोई भी मनुष्य, स्त्री, देवता, पशु-पक्षी, जलचर इत्यादि, न ही दिन में और न ही रात्रि में, न घर के बाहर और न घर के भीतर और ना किसी अस्त्र से ना किसी शस्त्र से मुझे मार ना सके।"
ब्रह्मा जी के इस वरदान को पाकर उसने अत्याचार मचाना प्रारंभ कर दिया और अपने पुत्र प्रहलाद को जो कि विष्णु जी का बहुत बड़ा भक्त था उसे भी मृत्यु दंड की सजा सुना दी।
हिरण्यकश्यप के इस अत्याचार को देखते हुए स्वयं भगवान विष्णु जी ने नरसिंह अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का अपने नाखूनों से, शाम के समय, दरवाजे की दहलीज़ पर वध कर दिया।
हिरण्याक्ष (Hiranyaksh) -
हिरण्याक्ष हिरण्यकश्यप का छोटा भाई था। वह भी अपने बड़े भाई की तरह पराक्रमी और शक्तिशाली था। उसने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या कर अजय होने का वरदान प्राप्त किया। ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर वह और भी अधिक अभिमानी और क्रूर हो गया। अपने इस अभिमान के वश में होकर उस क्रूर असुर ने अत्याचार करना प्रारम्भ कर दिया और उसने पृथ्वी को रसातल में जाकर छुपा दिया। तब उसके इस अत्याचार का अंत करने के लिए प्रभु श्री हरि विष्णु जी ने वराह अवतार लिया और हिरण्याक्ष का वध किया। और पृथ्वी को भी जल से बाहर निकाल कर लाए।
महिषासुर (Mahishasur)-
महिषासुर रम्भासुर का पुत्र था जो कि बहुत शक्तिशाली था उसने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे अमरता का वरदान मांगा।
तब इस बात पर ब्रह्मा जी मुस्कराते हुए उससे बोले कि तुम मृत्यु को छोड़कर कोई और वरदान मांग लो। तब ब्रह्म जी से महिषासुर ने कहा कि आप मुझे वरदान दीजिए की कोई भी देवता और दानव मुझे परास्त नहीं कर सके। उसके इस वरदान पर ब्रह्मा जी ने मुस्कुराते हुए तथास्तु कहा और अदृश्य हो गए।
ब्रह्मा जी से मिले वरदान से महिषासुर और भी अधिक क्रूर और अभिमानी हो गया। उसने पृथ्वी लोक और स्वर्ग लोक में उत्पात मचाना प्रारंभ कर दिया। उस दुष्ट राक्षस ने स्वर्ग पर आक्रमण करके इंद्र को तथा अन्य देवों को परास्त किया और स्वर्ग पर कब्जा कर लिया।
ब्रह्मा जी के वरदान के कारण सभी देव उसे परास्त करने में असफल रहे तब सभी देवताओं ने भगवती की अराधना की जिसके फल स्वरुप सभी देवताओं के शरीर से दिव्य तेज निकलकर एक परम सुंदरी के रूप में प्रकट हुआ। जिनको सभी देवों ने मिलकर कई अस्त्र शस्त्र दिए। और उनसे महिषासुर के वध के लिए प्रार्थना की।
इसके बाद महिषासुर और माँ दुर्गा के बीच युद्ध हुआ जिसमें माता रानी ने महिषासुर का वध किया।
तारकासुर (Tarkasur)-
तारकासुर वज्रांग नामक दैत्य का पुत्र था। उसने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या कर उनसे दो वरदान मांगे। उसने पहला वरदान माँगा कि इस सम्पूर्ण सृष्टि में मेरे समान कोई शक्तिशाली नहीं हो और दूसरा वरदान माँगा कि शिव का पुत्र ही मेरा वध कर सके।
ब्रह्मा जी ने तारक को ये वरदान दिए जिन्हें प्राप्त कर तारक अत्याधिक शक्तिशाली हो गया। उसकी शक्तियों से प्रभावित होकर दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने उसे असुरों का राजा बना दिया तब से उसका नाम तारकासुर पड़ा। उसने अपनी मायावी शक्तियों के प्रयोग से देवताओं को पराजित किया और स्वर्ग पर भी अपना आधिपत्य स्थापित किया। उसकी शक्तियों से भयभीत होकर सभी देवता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उनसे तारकासुर के वध का उपाय पूछा। तब ब्रह्मा जी ने उन्हें बताया कि शिव जी से उत्पन्न पुत्र ही उसका वध कर सकेगा। अतः सभी देवताओं ने कामदेव और रति की सहायता से पार्वती जी के साथ शिव जी को वैवाहिक जीवन में बांधने के लिए प्रयत्न किया परंतु शिव जी ने कामदेव से क्रुद्ध होकर उनको भस्म कर दिया। तब पार्वती जी ने शिव जी को पाने के लिए कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर शिव जी ने उनके साथ विवाह किया जिनसे उन्हें कार्तिकेय नामक पुत्र की प्राप्ति हुयी। इन्हीं कार्तिकेय जी के द्वारा दुष्ट असुर तारकासुर का वध सम्भव हुआ।
त्रिपुरासुर (Tripurasur)-
तारकासुर जिसका वध शिव जी के पुत्र कार्तिकेय जी ने किया था उसके तीन पुत्र तरकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युनमाली थे। उन तीनों ने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की जिनसे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उनसे वर मांगने को कहा तब उन तीनों ने ब्रह्मा जी से वरदान में तीन पुरियों को माँगा और कहा कि उनकी मृत्यु तभी सम्भव हो जब ये तीनों पुरीयां अभिजीत नक्षत्र में एक ही रेखा में हो और कोई क्रोधजित् अत्यंत शांत अवस्था में असंभव रथ और असंभव बाण का सहारा लेकर हमें मारना चाहे, तब ही हमारी मृत्यु हो।तब ब्रह्मा जी तथास्तु कहकर वहाँ से अंतर्ध्यान हो गए।
वरदान के अनुसार तारकाक्ष के लिए स्वर्ण पुरी, कमलाक्ष के लिए रजत पुरी और विद्युनमाली के लिए लौहपुरी का निर्माण किया गया। उन तीनों शक्तिशाली असुरों ने समस्त जगत के प्राणियों को सताना प्रारंभ कर दिया। उनको रोकने में सभी देव असफल हो रहे थे। तब उनके वध के लिए सभी देवताओं ने मिलकर शिव जी का साथ दिया और शिव जी के लिए असंभव रथ, धनुष और बाण का निर्माण किया गया जिसमें कई सारे देवी- देवता, पर्वत, वासुकि नाग आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
तब अभिजीत नक्षत्र में तीनों पुरियों के एक ही सीधी रेखा में एकत्रित होते ही शिव जी ने उन पुरियों को और तीनों असुरों को भस्म कर दिया।
वृत्रासुर (Vritrasur)-
एक बार जब इंद्र देव से गुरु बृहस्पति जी नाराज हो गए तो देवराज इंद्र ने त्वष्टा के पुत्र विश्वदेव को यज्ञ का पुरोहित बनाया तो उसने ने चुपके से दानवों की भी आहुति उसमें दे दी. जिसका पता लगने पर इंद्र ने विश्वदेव का सिर धड़ से अलग कर दिया. इसका बदला लेने के लिए त्वष्टा ने यज्ञ कर वृत्रासुर को पैदा किया. जिसने अपने भाई का बदला लेने के लिए इंद्र को युद्ध के लिए चुनौती दे दी और उत्पात मचाने लगा और देवताओं को परेशान करने लगा। इंद्र व अन्य देवताओं के सभी अस्त्र शस्त्र सब वृत्रासुर पर विफल रहे। तब वृत्रासुर के भय से भयभीत होकर इंद्र देव त्रिदेव के पास पहुंचे वहाँ उन्हें ज्ञात हुआ कि वृत्रासुर की मृत्यु मात्र ऋषि दधीचि के अस्थियों से बने वज्र से ही सम्भव है। इसके बाद इंद्र देव ऋषि दधीचि के पास पहुंचे और वहाँ पहुंचने पर उन्होंने ऋषि दधीचि से उनकी अस्थियों के दान के लिए प्रार्थना की परंतु महर्षि दधीचि ने मना कर दिया। फिर इन्द्रदेव के दोबारा समझाने पर महर्षि दधीचि ने अपनी अस्थियों का दान दिया जिससे वज्र का निर्माण हुआ। इसी वज्र के प्रयोग से इंद्र ने वृत्रासुर का वध किया।
भस्मासुर (Bhasmasur)-
सम्पूर्ण जगत पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए भस्मासुर ने शिव जी की घोर तपस्या कर उनसे वरदान माँगा कि मैं जिस पर भी अपना हाथ रख दूँ वह वहीं भस्म हो जाए। अपने भक्त की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने उसे ये वरदान दे दिया।
अपने उस वरदान की परख करने के लिए उसने शिव जी पर हाथ रखने की चेष्टा की।
त्रिलोकी नाथ, कालों के भी काल महाकाल अर्थात् शिव जी अपने दिया हुआ वरदान झूठा सिद्ध ना हो इस वजह से वहाँ से चले गए और विष्णु जी की शरण में पहुंचे। भस्मासुर वहाँ भी उनके पीछे आ गया। तब प्रभु विष्णु जी ने अत्यंत सुंदर मोहिनी रूप रखा। उनको देख कर भस्मासुर मोहित हो गया।
मोहिनी रूप में विष्णु जी ने भस्मासुर को नृत्य करने के लिए प्रेरित किया, भस्मासुर उनकी बात मान गया। सही समय देखकर जैसे ही मोहिनी ने अपने सिर पर हाथ रखा वैसे ही भस्मासुर ने भी अपने सिर पर हाथ रख दिया और भस्म हो गया।
तो मित्रों ये थे सबसे शक्तिशाली असुरों की सूची में सात असुर अभी इनके अलावा कई और असुर हैं जो अत्याधिक शक्तिशाली थे जिनके बारे में हम आपको अगली पोस्ट में बतायेंगे।
धन्यवाद।
Post a Comment