सनातन धर्म की दिव्यता:- माता सीता, माता पार्वती और राधा जी के जीवन की अनसुनी कहानी। Sanatan Dharm ki Divyata- Seeta ji, Parvati ji aur Radha ji ke janm ki Katha
सीता जी, पार्वती जी और राधा जी के जन्म की सुंदर कथा (Seeta ji, Parvati ji aur Radha ji ke janam ki sundar katha)
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Incredible Story about birth of Sita ji, Parvati ji and Radha ji. |
हमारे सनातन धर्म (Sanatan Dharma) की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि यहाँ हम चाहे सीता जी को माने, चाहे राधा जी को और चाहे पार्वती जी को माने या देवी मां के किसी भी रूप को माने, ये सभी हमारे जीवन में सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करने वाली हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली हैं और ये सभी अनेक रूपों में एक ही हैं। भक्त उन्हें चाहें किसी भी रूप में माने ये उसी रूप में अपने भक्त की सदैव रक्षा करती हैं और उनका मंगल भी करती हैं।
लेकिन कभी आपने सोचा है कि क्या जगत जननी माँ पार्वती, माँ सीता जी और राधा जी ये एक दूसरे से किस प्रकार संबंधित है? और क्या है इनके जन्म की कथा?
इन सभी प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए आप इस पोस्ट में हमारे साथ जुड़े रहिए।
माता सीता, माता पार्वती और राधा जी के जन्म की अनसुनी कहानी। Sita ji, Parvati ji, Radha ji ke janm ki ansuni kahani -

Sita ji, Parvati ji, Radha ji

एक समय की बात है जब नारदजी ब्रह्मा जी से हिमालय की पत्नी मेना के श्राप के बारे में पूछते हैं तो ब्रह्मा जी बताते हैं कि मेरे पुत्र दक्ष की सभी कन्याओं में से एक स्वधा नाम की कन्या थी जिनका विवाह पितरों से हुआ था। स्वधा की तीन पुत्रियाँ थी जो अत्यंत सौभाग्यशालिनी, प्रतापी, परम योगिनी व धर्म की मूर्ति थी। उनमें से ज्येष्ठ पुत्री का नाम 'मेना', मँझली अर्थात् बीच वाली पुत्री का नाम 'धन्या' तथा सबसे छोटी पुत्री का नाम 'कलावती' था। यह सभी कन्याएं पितरों की मानस पुत्रियाँ थी अर्थात उनके मन से प्रकट हुई थी अर्थात उनका जन्म किसी माता के गर्भ से नहीं हुआ था। इनके सुन्दर नामों का स्मरण करने मात्र से ही मनुष्यों को इच्छित फल की प्राप्ति होती है। ये तीनों कन्याएँ अत्यधिक सुन्दर, परम योगिनी, तीनों लोकों में सर्वत्र जा सकने वाली तथा ज्ञान की निधि हैं।
एक समय वे तीनों बहनें भगवान विष्णु जी के श्वेतद्वीप नामक निवास स्थान में उनके दर्शन करने के लिए पहुंची । वहाँ कई सारे ऋषि-मुनि, साधु-संत, व देवता गण आए हुए थे। वहीं पर सनकादि मुनि भी विष्णु जी के दर्शन हेतु वहाँ पहुंचे, वे जब वहाँ पहुंचे तो उन्हें देख कर श्वेत द्वीप के सभी लोग उन्हें देखकर प्रणाम करते हुए उठ कर खड़े हो गए। परंतु वे तीनों बहिनें उन्हें देखकर नहीं उठी, तब उनकी इस बात से क्रोधित होकर सनत कुमारों ने उन्हें स्वर्ग से दूर होकर मनुष्य की स्त्री बनने का श्राप दे दिया। उनके इस श्राप से भयभीत होकर उन तीनों कन्याओं ने उनसे क्षमा माँगी और उन्हें माफ़ करने के लिए प्रार्थना करने लगी और उनसे स्वर्गलोक वापिस आने के लिए उपाय पूछने लगी।
तब उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर सनत्कुमार ने कहा कि ज्येष्ठ पुत्री मेना तुम भगवान विष्णु जी के अंश-भूत हिमालय की पत्नी होकर 'पार्वती (Parwati)' नामक कन्या को जन्म दोगी, जो भगवान शिव जी की कठोर तपस्या करके शिव जी को प्रसन्न कर उनकी पत्नी बनेंगी और उन्हीं पार्वती जी के वरदान से तुम अपने पति हिमालय के साथ उसी शरीर से कैलाश नामक परम पद को प्राप्त हो जाओगी। Parvati JI tapasya karte huye
इसके बाद उन्होंने मॅंझली योगिनी अर्थात् धन्या से कहा कि तुम त्रेतायुग में राजा जनक की पत्नी बनोगी और महालक्ष्मी स्वरुपा 'सीता जी (Seeta Ji)' को कन्या के रूप में जन्म दोगी। तुम्हारी पुत्री सीता भगवान राम जी की पत्नी बनकर लोकाचार का आश्रय लेकर अपने पति श्री राम जी के साथ विहार करेंगी। पुत्री धन्या तुम और तुम्हारे पति राजा जनक जिनको राजा सीरध्वज के नाम से भी जानते हैं अपनी पुत्री सीता के प्रभाव से बैकुंठ धाम में जाएंगे।
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Sita ji |
इसके बाद उन्होंने तीसरी और सबसे छोटी पुत्री कलावती से कहा कि तुम द्वापर युग के अंतिम भाग में वृषभानु की पत्नी बनकर साक्षात गोलोक धाम में निवास करने वाली 'राधा (Radha)' नामक सुन्दर पुत्री को जन्म दोगी जो कि श्री कृष्ण जी के साथ गुप्त स्नेह में बंध कर उनकी प्रियतमा बनेंगी और तुम्हारे कल्याण का कारण बनेंगी और तुम अपनी कन्या राधा के साथ गोलोक धाम में आ जाओगी।
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Radha ji |
इस प्रकार उन तीनों कन्याओं को उनके श्राप से मुक्ति मिली और वे तीनों अपने घर को चली गईं।
ये छोटी सी कथा 'शिव महापुराण (Shiv mahaPuran)' के 'रुद्र संहिता (Rudra Samhita)' से ली गई है और इस कथा से जो सबसे अच्छी सीख मिली वो ये है कि विपत्ति में पड़े बिना कहाँ किसी की महिमा प्रकट होती है। जीवन में संकट आने पर ही हम अपनी शक्ति को पहचानते हैं और तभी संकट से मुक्ति मिलने पर हमें दुर्लभ सुख की प्राप्ति होती है।
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