सूर्य देव की सबसे शक्तिशाली संतान कौन हैं? सूर्य देव के सबसे शक्तिशाली पुत्र। Surya Dev ke sabse shaktishali santan

सूर्य देव की सबसे शक्तिशाली संतान (Surya dev ke sabse shaktishali santan)-

Surya dev ke sabse shaktishali putra
Surya dev ke shaktishali putra


सूर्य देव जिनके प्रकाश से ये हमारा संसार रोशन होता है और जो असीम ऊर्जा के स्वामी हैं, उनके महत्व को हमारे ग्रंथों में बहुत अच्छे से दर्शाया गया है। वेदों में सूर्य को चर-अचर जगत की आत्मा भी कहा गया है सूर्य से ही पृथ्वी पर जीवन सम्भव है यह भी एक सर्व समान्य सत्य है। हम सूर्य के बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। वेदों में सूर्य को भगवान का नेत्र भी कहा गया है।  

आज हम इस पोस्ट में शक्तिशाली सूर्य देव के शक्तिशाली पुत्रों के बारे में बताने वाले हैं, जिनके विषय में जानकर आप भी अचंभित हो जायेंगे।

सूर्य देव के सबसे शक्तिशाली पुत्रों के नाम (Surya dev ke sabse shaktishali putra)

वानर राज सुग्रीव -

vanar raj sugreev
sugreev

 

  

सुग्रीव रामायण के एक प्रमुख पात्र थे। रामायण में इनका वर्णन बाली के छोटे भाई और प्रभु श्री राम के मित्र के रूप में मिलता है। वानर राज सुग्रीव अपने भाई बाली की भाँति ही बहुत ही अधिक शक्तिशाली थे। वे बड़ी बड़ी चट्टानों और पेड़ों को आसानी से उठा लेते थे। सूर्य पुत्र सुग्रीव में असीम बल था। रामायण के किष्किंधा कांड, सुंदर कांड और लंका कांड में इनका वर्णन मिलता है।
युद्घ के दौरान सुग्रीव ने कुंभकर्ण के पुत्र को मारा था और रावण के साथ होने वाले द्वन्द युद्घ में रावण को कड़ी टक्कर दी, फिर जब रावण ने अपने आपको हारता हुआ पाया तो मायावी शक्तियों का सहारा लेकर सुग्रीव को परास्त किया। इन्होंने कुंभकर्ण के पुत्र कुम्भ और रावण के भाई महोदर का वध भी किया था।


अंग राज कर्ण -

surya putra karna
Angraaj Surya putra Karna

 
 

महाभारत के महान योद्धाओं में से एक योद्धा कर्ण का नाम तो आप सभी ने सुना ही होगा। भला ऐसा कौन होगा जो कर्ण से परिचित नहीं होगा। दानवीर कर्ण बहुत ही शक्तिशाली योद्धा थे, उनकी दानवीरता का परिचय तो आज भी दिया जाता है। ये माता कुंती और सूर्य देव के पुत्र थे ।कर्ण महाभारत के ऐसे पात्र थे जो बचपन से ही तमाम विषमताओं का सामना करते हुए बड़े हुए। गुरु परशुराम जी ने कर्ण को अपना सबसे शक्तिशाली शिष्य भी बताया था। महाभारत के युद्ध में भी उन्होंने अर्जुन को कड़ी टक्कर दी थी । अपने पिता सूर्य देव की वजह से उन्हें कवच व कुंडल भी प्राप्त हुए इसके साथ साथ उन्हें कई सारे शक्तिशाली दिव्यास्त्रों का भी ज्ञान था । वैसे आज के समय में अगर कर्ण के प्रशंसकों की बात की जाए तो कर्ण के प्रशंसक इतने हैं कि उनसे एक राज्य तैयार हो जाएगा।


यमराज -

yamraaj
mrityu ke devta -Yamraaj

 
 

यमराज को पौराणिक कथाओं में मृत्यु का देव भी कहा गया हैं। इंसान की मृत्यु के बाद जब इंसान यम लोक पहुंचते हैं तो वहाँ चित्रगुप्त जी उनके कर्मों का लेखा जोखा यमराज जी को बताते हैं तब यमराज जी उनके कर्मों के अनुसार उन्हें सजा देते हैं। ये भैंसे पर सवारी करते हैं। अगर उनके जन्म की बात करें तो विश्वकर्मा जी की पुत्री संज्ञा से भगवान सूर्य का विवाह होने के पश्चात उनके दो पुत्र यमराज और मनु और एक पुत्री यमुना हुयी। ये दक्षिण दिशा के संरक्षक हैं। महाभारत में धर्मराज युधिष्ठर इन्हीं के पुत्र थे।
जब यमराज जी का रावण के साथ युद्ध हुआ था तो रावण को मारने के लिए यमराज ने जब ब्रह्मा जी से प्राप्त काल दंड का प्रयोग करना चाहा तो ब्रह्मा जी ने वहाँ प्रकट होकर उन्हें ऐसा करने से रोक दिया और कहा कि इस दण्ड को मैंने इस प्रकार बनाया है कि इसकी काट सम्भव ना हो. इसका प्रयोग करने के बाद ये अपने शत्रु को मारकर ही रहेगा और अगर तुमने ऐसा किया तो रावण को मिला हुआ वरदान गलत हो जाएगा और प्रभु नारायण जी के कार्य में भी बाधा आएगी। इनके पास यम पाश जैसे शक्तिशाली पाश भी थे।


शनि देव -

Surya putra Shani dev
shani dev

 
 

शनि देव हिन्दू धर्म में पूजे जाने वाले प्रमुख देवताओं में से एक हैं। इनको न्याय का देवता भी कहा जाता है। कथाओं के अनुसार जब सूर्य देव का तेज सहन ना करने के कारण उनकी पत्नी संज्ञा अपनी छाया को वहाँ छोड़कर घोड़ी के रूप में तपस्या करने चली गई। तब सूर्य देव और छाया के मिलन से शनि देव का जन्म हुआ। इनके जन्म लेते ही देवता, दानव भयभीत हो गए। इनके क्रोध का प्रभाव इतना अधिक था कि इनके क्रोध से इनके पिता सूर्य देव भी नहीं बच पाए। तब इनके इस क्रोध को देखते हुए भगवान शिव ने शनि को दण्डित करने का निर्णय लिया और शिव जी का शनि के साथ घनघोर युद्घ हुआ। शिव जी के प्रहार से शनि देव अचेत हो गए, तब सूर्य देव के कहने पर शिव जी ने शनि को ठीक कर दिया और दंडाधिकारी बना दिया। ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार बताया जाता है कि शनि देव की दृष्टि की वजह से ही गणेश जी का सिर कटा था और रामायण में रावण का संहार भी इन्हीं की दृष्टि की वजह से हुआ था।
 

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